Saraswati Chalisa lyrics in Hindi PDF। सरस्वती चालीसा

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Saraswati Chalisa

Saraswati Chalisa lyrics PDF : सरस्वती चालीसा का प्रारंभ उसमें धार्मिक और साहित्यिक महत्व के साथ सरस्वती देवी की कृपा का आह्वान करता है। इसे पढ़ने से पहले हम सरस्वती को समर्पित करते हैं, जो ज्ञान, संगीत, कला, ज्ञान, विद्या और सीख की हिन्दू देवी हैं। यह परिचय भिन्न-भिन्न संस्करणों में अलग-अलग हो सकता है

Saraswati Chalisa lyrics

Saraswati chalisa lyrics hindi

॥दोहा॥

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जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।

बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

इस पंक्ति में वंदना की जा रही है और यह कहानीकार्य है जिसमें भगवान ब्रह्मा, देवी सरस्वती और उनके पुत्र विश्वकर्मा को समर्पित है। यहां ब्रह्मा को ‘जनक’ और सरस्वती को ‘जननी पद्मराज’ कहा गया है।

यह पंक्ति उनकी पूजा और स्तुति करती है और उन्हें बुद्धि और बल की प्राप्ति की प्रार्थना करती है। यहां ‘निज मस्तक पर धरी’ का अर्थ है कि भगवान ब्रह्मा और देवी सरस्वती अपनी श्रीमुखी पर्यावरण में अपनी धारणा करें, जिससे कि हमें उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।

दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

इस पंक्ति में देवी सरस्वती की स्तुति हो रही है। और इसमें उनकी महिमा का वर्णन है। यह कहानी उनकी शक्तियों और दया को दर्शाती है।

यहां कहा गया है कि भगवान सरस्वती तो पूर्ण जगत में व्याप्त हैं और उनकी महिमा अमित और अनंत है। वे सभी पापों को नष्ट करने की क्षमता रखती हैं और इसलिए उन्हें दुष्जनों के पापों को नष्ट करने का कार्य सौंपा गया है। यहां ‘मातृ’ का उपयोग किया गया है जो देवी सरस्वती को माता की संकेत करता है और इस पंक्ति में उन्हें नष्ट करने की प्रार्थना की जा रही है।

॥चालीसा॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥

इस पंक्ति में भगवान गणेश की स्तुति हो रही है। यह पंक्तियां उनकी महिमा और शक्तियों का वर्णन करती हैं। गणेश जी को विनायक भी कहा जाता है, जो उनके एक अद्वितीय नाम है।

यहां कहा गया है कि भगवान गणेश सभी बुद्धिमानता और शक्तियों के प्रभु हैं, और वे अमर और अविनाशी हैं, अर्थात् वे अनन्त हैं और नष्ट नहीं होते। वे जीतने भी जगह हों, वहां अपनी वीणा धारण करते हैं और सदा ही सुहंसा में सवार रहते हैं। इसका अर्थ है कि वे हमेशा ही खुशी और सुख में रहते हैं और सभी जगह अपनी विशेष आनंदमय वाणी से प्रकट होते हैं।

रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

इस पंक्ति में भगवानी दुर्गा (माता) की स्तुति हो रही है। यह कहानीकार्य है और उसमें माता दुर्गा की महिमा का वर्णन हो रहा है।

यहां कहा गया है कि माता दुर्गा चार भुजाओं वाली रूप धारण करती हैं और उनकी महिमा संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। जब जगत् में पाप और बुद्धि प्रबल होती है, तब धर्म की ज्योति फीकी लगती है। अर्थात् जब अन्याय और अधर्म प्रबल होते हैं, तो धर्म का प्रभाव कम होता है।

तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥

वाल्मीकि जी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥

इस पंक्ति में दुर्गा माता की बात की जा रही है। यह कहानी उनके निजी अवतार के महत्व को और उनकी शक्तियों को बताती है।

यहां कहा गया है कि जब माता दुर्गा अपने निजी अवतार में प्रकट होती हैं, तब वे पापों से मुक्ति प्रदान करती हैं। वाल्मीकि जी जो की पहले एक हत्यारा थे, उन्हें भी तुम्हारे प्रसाद की कृपा से ही संसार जानता है। यहां ‘तुम्हारे प्रसाद’ से माता दुर्गा की प्रसन्नता और कृपा का बताया जा रहा है।

रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“जिसने ‘रामचरित मानस’ रची बनाई। वह आदि कवि की पदवी प्राप्त की॥

जो कालिदास विख्यात हुए। उन्हें तेरी कृपा दृष्टि से माता॥”

इस पंक्ति में देवी सरस्वती (माता) की स्तुति हो रही है। यहां सरस्वती माता की कृपा और महिमा का वर्णन किया गया है।

यहां कहा गया है कि जिसने ‘रामचरित मानस’ को रचा और उसे बनाया, उसने आदि कवि की पदवी प्राप्त की। इसके अर्थ है कि उस लेखक ने एक महान कविता का निर्माण किया और उसे अत्यंत प्रसिद्ध किया।

फिर कहा गया है कि कालिदास जो विख्यात हो गए, उन्हें उनकी कृपा की दृष्टि से ही मिली। यहां ‘तेरी कृपा दृष्टि से माता’ का उपयोग किया गया है जो सरस्वती माता को संकेत करता है और इस पंक्ति में उनकी कृपा की प्रार्थना की जा रही है।

तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा॥

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“तुलसी, सूर और अन्य विद्वान्। वे भये और ज्ञानी हो गए॥

वे और किसी की आश्रय नहीं रहे। केवल आपकी कृपा ही उनका आधार है, ओ माता॥”

यहां कहा गया है कि तुलसी, सूर और अन्य विद्वान् जिन्होंने ज्ञान प्राप्त किया है, उन्हें भय दूर हो गया है और वे ज्ञानी बन गए हैं।

फिर कहा गया है कि वे और किसी की आश्रय नहीं रहे, उनका आधार केवल आपकी कृपा है, हे माता॥ यहां ‘केव’ का अर्थ है केवल या केवलता, जिससे यह संकेतित होता है कि माता सरस्वती की कृपा विद्वानों का एकमात्र आधार है। इस पंक्ति में माता सरस्वती की प्रार्थना की जा रही है

मधुकैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

समर हजार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“मधुकैटभ जो अति बलवाना। विष्णु ने उनसे बाहुयुद्ध का सामना किया॥

उन्होंने हजार पाँच में घोर युद्ध किया। फिर भी विष्णु का मुख उनसे मुड़ा नहीं॥”

इस पंक्ति में देवी दुर्गा (माता) की स्तुति हो रही है। यहां उनकी महिमा, शक्ति और उनके युद्ध की कथा बताई जा रही है।

यहां कहा गया है कि मधुकैटभ बहुत ही बलवान थे, लेकिन विष्णु ने उनसे बाहुयुद्ध का सामना किया। बाहुयुद्ध का अर्थ है हाथों की लड़ाई या हाथों का मुकाबला।

फिर कहा गया है कि मधुकैटभ ने हजारों पाँच में घोर युद्ध किया, लेकिन विष्णु का मुख उनसे मुड़ा नहीं। इससे यह बताया जा रहा है कि विष्णु ने अपनी शक्ति और सामर्थ्य से मधुकैटभ का सामना किया और उन्हें परास्त किया

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“माता ने सहायता की थी, लेकिन उसके परिणामस्वरूप अनुभव हुआ। बुद्धि उलट गई और खलहाल (कष्ट) हो गया॥

उसी से मृत्यु (नाश) का कारण हुआ, लेकिन मैंने आपकी माता के प्रति मनोरथ रखा है॥”

इस पंक्ति में माता काली (माता) की स्तुति हो रही है। यहां माता काली के द्वारा प्राप्त की गई मदद और उसके परिणाम का वर्णन किया गया है।

यहां कहा गया है कि माता ने सहायता की थी, लेकिन उसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की बुद्धि उलट गई और खलहाल (कष्ट) हो गया। यह इसका संकेत है कि माता काली अपनी शक्ति को उपयोग करके बुरे और दुष्ट लोगों के खिलाफ लड़ती है और उन्हें सजा देती है।

फिर कहा गया है कि उसी के कारण मृत्यु (नाश) हुआ, लेकिन प्रतिष्ठा और शक्ति के प्रतीक माता काली के प्रति मनोरथ रखने का उल्लेख किया गया है। यह बताता है कि प्रार्थना करने वाला व्यक्ति अपनी मनोकामनाएं माता काली के सामर्थ्य पर आधारित करता है और उनसे आशा करता है कि वह उसकी मनोरथों को पूरा करेंगी।

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता॥

रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“चंड और मुण्ड, जो विख्यात थे। उन्हें माता ने क्षण में संहारा॥

रक्त बीज से शक्तिशाली पापी। सुरों और मुनियों की हृदय धरती हिली॥”

इस पंक्ति में माता दुर्गा (माता) की स्तुति हो रही है। यहां माता दुर्गा द्वारा चंड और मुण्ड, दो राक्षसी दैत्यों का संहार किया गया है।

कहा जा रहा है कि चंड और मुण्ड विख्यात थे, लेकिन माता ने उन्हें क्षण में संहारा। इससे यह संकेत मिलता है कि माता दुर्गा शक्तिशाली है और दुष्टता को नष्ट करने की क्षमता रखती है।

फिर कहा जा रहा है कि वह रक्त बीज से समर्थ पापी है, जिससे स्वर्गीय देवता और मुनियों के हृदय कांप गए। इससे यह समझा जाता है कि माता दुर्गा दुष्टता का संहार करने में पूरी शक्तिशाली हैं और उनकी प्रकोप की सीमा का उदाहरण के रूप में, चंड और मुण्ड द्वारा प्रतिष्ठित देवताओं और मुनियों के हृदय कांप गए हैं, यह बताता है कि माता दुर्गा की शक्ति और प्रताप अत्यधिक है। वे पापी और दुष्ट शक्तियों को नष्ट करने के लिए शक्तिशाली बीजों का उपयोग करती हैं।

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।बारबार बिन वउं जगदंबा॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“कदली के खम्बे जैसे सिर काट देती है, बिना वो दोहराते हैं, हे जगदंबा॥

जो शुंभ और निशुंभ के प्रसिद्ध हैं, तुम्हीं ही उन्हें क्षण में बाँध लेती हो, हे अम्बा॥”

इस पंक्ति में माता दुर्गा की महिमा वर्णित है। यहां कहा जा रहा है कि माता दुर्गा की शक्ति और सामर्थ्य उन्हें कदली के खम्बे के समान तेजी से शत्रुओं के सिर काट देती है। वे बार-बार पुनर्जन्म करने की आवश्यकता नहीं होती हैं, क्योंकि वे स्वयं जन्मान्तर की प्रक्रिया को बाधित कर देती हैं।

इस पंक्ति में शुंभ और निशुंभ, दुर्गा माता के प्रसिद्ध शत्रु, का उल्लेख किया गया है। कहा जा रहा है कि उन्हें तुम्हीं ही क्षण में बाँध लेती हो, जिससे इसका अर्थ है कि माता दुर्गा उनके प्रति पूर्ण संरक्षण

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥12

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“भरतमाता ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके, रामचंद्र जी को वनवास भेजा॥

इस प्रकार रावण का वध तूने किया, और सभी देवताओं और मनुष्यों को सुख प्रदान किया॥”

इस पंक्ति में माता कैकेयी की सामर्थ्यशाली बुद्धि का उल्लेख किया गया है। उन्होंने रामचंद्र जी को वनवास भेजा, जिससे उन्होंने रावण का वध किया और सभी देवताओं और मनुष्यों को सुख प्रदान किया। इससे माता कैकेयी की पुत्रभक्ति, बुद्धिशक्ति और दूसरों के हित में योगदान की महिमा प्रकट होती है।

को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥13

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा:

“कौन है जो तेरी महिमा और गुणों का गान करे, निगमों ने तेरी अनादि और अनंत कथा कही है॥

जब हम विष्णु और रुद्र की महिमा गाते हैं, तब हम जानते हैं कि तुम हमारे रक्षाकारी हो॥”

इस पंक्ति में माता की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें कहा जा रहा है कि कौन है जो माता की महिमा और गुणों का गान कर सकता है, क्योंकि उनकी महिमा निगमों द्वारा अनादि और अनंत रूप से कही गई है। जब हम विष्णु और रुद्र की महिमा गाते हैं, तब हम जानते हैं कि माता हमारे रक्षाकारी हैं। इससे माता की महिमा, प्रशंसा और उनकी शक्तियों की महत्ता प्रकट होती है।

रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

इस पंक्ति में माता काली की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें कहा जा रहा है कि माता काली रक्तवर्ण वाली हैं और शताक्षी (शतानन) हैं। उनका नाम अपार है और वे दानवों को भक्षित करने वाली हैं। उन्होंने अत्यन्त दुर्गम कार्यों को धरती पर सिद्ध किया है और दुर्गा नाम से सम्पूर्ण जगत को आपने लिया है। इससे माता काली की प्रभावशाली स्वरूप, शक्ति और नाम की महिमा प्रकट होती है।

दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित को मारन चाहे।कानन में घेरे मृग नाहे॥

इस पंक्ति में माता दुर्गा की महिमा वर्णित की गई है। यह कहा जा रहा है कि माता दुर्गा आदि विभूतियों को हरने वाली हैं और जब जब हम पर अनुग्रह करती हैं, तब हमें सुख देती हैं। इसके साथ ही कहा जा रहा है कि जब राजा क्रोधित होता है तो माता उसे मारना चाहती है, लेकिन जंगल में घेरे हुए मृगों को वह नहीं हर सकती है। इससे माता दुर्गा की साहसिक स्वरूप, उनकी कृपा और उनके शक्तिशाली स्वरूप का वर्णन होता है।

सागर मध्य पोत के भंजे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥

इस पंक्ति में माता दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। यह कहा जा रहा है कि वह सागर में पोत के भंजे की तरह हैं, जो अत्यधिक तूफान के साथ किसी के साथ नहीं होती हैं। इसके साथ ही कहा जा रहा है कि भूतों और प्रेतों की बाधा या दुःख में हो या व्यक्ति दरिद्र या संकट में हो, उनकी सहायता माता दुर्गा करेंगी। इससे माता दुर्गा की महाशक्ति, रक्षा और संकटों से मुक्ति देने की क्षमता का वर्णन होता है।

नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

इस पंक्ति में ध्यान जाप की महत्वता बताई गई है। इसका अर्थ है कि जब हम ईश्वर के नाम का जप करते हैं, तो सभी मंगल कर्म सिद्ध होते हैं और इसमें कोई संशय नहीं करता। इसके साथ ही कहा जा रहा है कि जो बिना पुत्र के आतुर है, वही भाई देवी चांड़ी की पूजा करते हैं। यह बताता है कि माता दुर्गा के नाम का जप करने से सभी अभिशापों से मुक्ति मिलती है और समस्त मंगल सिद्ध होते हैं।

करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥

यह पंक्ति चालीसा के पाठ की महत्वता को बताती है। इसका अर्थ है कि यदि हम इस चालीसा को नित्य रूप से पढ़ते हैं, तो ईश्वर हमें सुंदर गुणवान पुत्र देते हैं। इसके साथ ही कहा जाता है कि धूप, आरती और अन्य नैवेद्य को चढ़ाने से संकटों से मुक्ति मिलती है। यह चालीसा की प्रशंसा करती है और उसके पाठ की महत्वता को बताती है।

भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥

यह पंक्ति भक्ति की महत्ता को बताती है। इसका अर्थ है कि हमेशा माता की भक्ति करने से किसी भी प्रकार का कलेश नहीं आता है। और सात बार बंधन का पाठ करने से सभी बंधनों से मुक्ति मिलती है। यह चालीसा की शक्ति और माता के प्रति विश्वास को प्रकट करती है।

रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी।

यह पंक्ति माता भवानी के प्रति एक भक्त की प्रार्थना को व्यक्त करती है। यह कहता है कि भवानी माता, कृपा करो और मुझे अपना दास स्वीकार करें, ताकि मैं रामसागर का निर्माण कर सकूं। इस पंक्ति में भक्त का निरंतर आशीर्वाद और सेवा के प्रति समर्पण दिखाया जाता है।

॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।

डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।

राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

यह पंक्ति माता सरस्वती की स्तुति और प्रार्थना को व्यक्त करती है। यह कहती है कि हे माता, तुम्हारी ज्योति सूर्य की तरह है, और मेरी स्थिति अंधकार है। मेरी रक्षा करो, ताकि मैं भव-कूप में न डूब जाऊं। इसके साथ ही, मुझे बल, बुद्धि, और विद्या प्रदान करें, हे सरस्वती माता, मेरी प्रार्थना सुनो। रामसागर, नीचतम व्यक्ति को आश्रय दो। यह पंक्ति एक भक्त की और सरस्वती माता के प्रति श्रद्धा और आदर को व्यक्त करती है। यह कहती है कि माता सरस्वती की कृपा से ही अंधकार को दूर करके मैं सुखमय जीवन जी सकता हूँ। माता सरस्वती से मेरी बुद्धि, ज्ञान, और कला को बल प्राप्त हो, और उनकी अनुग्रह से मैं रामसागर की तरह दुष्टता का समाप्ति कर सकता हूँ।

यह पंक्तियाँ माता सरस्वती की महिमा, शक्ति और करुणा का वर्णन करती हैं

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Saraswati chalisa lyrics English

Janak jananī Padmaraj, nij mastak par dhari.

Bandaun mātu Saraswati, buddhi bal de dātāri.

Purna jagat mein vyāpt tava, mahimā amit anantu.

Dushjanon ke pāp ko, mātu tu hi ab hantu.

॥Chalisa॥

Jai Shri sakal buddhi balrasi. Jai sarvajna amar avinashi॥

Jai jai jai vīṇākar dhārī. Karatī sadā suhansa savārī ॥

Rūp caturbhuja dhārī mātā. Sakal vishva andar vikhyātā॥

Jag mein pāp buddhi jab hotī. Tab hī dharma kī phīkī jyoti॥

Tab hī mātu kā nij avatārī. Pāp hīn karatī mahatārī॥

Valmiki ji the hatyara. Tav prasad janai sansara॥

Ramcharit jo rache banaee. Adi kavi ki padvi pai॥

Kalidas jo bhaye vikhyata. Teri kripa drishti se mata॥

Tulsi sur adi vidwana. Bhaye aur jo gyani nana॥

Tinh na aur raheu avalamba. Kev kripa aapki amba॥

Karahu kripa soi matu Bhavani. Dukhit din nij dasahi jani॥

Putra karahi aparadh bahuta. Tehi na dharai chit mata॥

Rakhu laaj Janani ab meri. Vinay karau bhanti bahu teri॥

Main anath teri avalamba. Kripa karau jay jay Jagdamba॥

Madhukaitabh jo ati balwana. Bahuyuddh Vishnu se thana॥

Samara hazaar paanch mein ghora. Phir bhi mukh unse nahin mora॥

Matu sahaya kinha tehi kala. Buddhi vipareet bhai khalahala॥

Tehi te mrityu bhai khaal keri. Puravahu matu manorath meri॥

Chand Mund jo the vikhyata. Kshan mahu samhare un mata॥

Rakt bij se samarth papai. Suramuni haday dhara sab kaapi॥

Kaatu sir jimi kadalī khamba. Barbaar bin vaun Jagdamba॥

Jagprasiddh jo Shumbha Nishumbha. Kshan mein baandhe tahi tu amba॥

Bharatamatu buddhi phereu jai. Ramchandra banvaas karaai॥

Ehividhi Ravana vadh tu kiya. Sur naramuni sabko sukh dinha॥

Ko samarth tav yash gun gaana. Nigam anadi anant bakhana॥

Vishnu Rudra jas kahin mari. Jinki ho tum rakshakari॥

Rakt Dantika aur Shatakshi. Naam apaar hai danav bhakshi॥

Durgam kaaj dhara par kinha. Durga naam sakal jag leenha॥

Durga aadi harni tu mata. Kripa karahu jab jab sukhdata॥

Nrip kopit ko maaran chahe. Kaanan mein ghere mriga nahe॥

Saagar madhya pot ke bhanje. Ati toofan nahin ko’u sange॥

Bhoot pret baadha ya dukh mein. Ho daridra athava sankat mein॥

Naam jape mangal sab hoi. Sanshay ismein karai na koi॥

Putrahin jo atur bhai. Sabai chhandi pujen ehi bhai॥

Karai path nit yah chalisa. Hoy putra sundar gun isha॥

Dhoopadik naivedya chadhavai. Sankat rahit avashya ho javai॥

Bhakti matu ki karain hamesha. Nikat na avai tahi kalesha॥

Bandi path karen sat bara. Bandi paash door ho sara॥

RamSagar baandhi hetu Bhavani. Kijai kripa daas nij jani॥


॥Doha॥

Matu surya kanti tava, andhakar mam roop।

Dooban se raksha karahu parun na main bhav koop॥

Balbuddhi vidya dehu mohi, sunahu Saraswati matu।

RamSagar adham ko ashray tu hi dedatu॥

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