Ram Raksha Stotra | राम रक्षा स्तोत्र | Ramraksha Stotra PDF

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राम रक्षा स्त्रोत (Ram Raksha Stotra in hindi) को हिंदी में पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लेख से पढ़ सकते हैं तथा पीडीएफ डाउनलोड ( PDF Download ) कर सकते हैं, Ram Raksha Stotra in hindi PDF को आप अपने फोन कंप्यूटर पर भी आसानी से डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं

राम रक्षा स्तोत्र हिंदी में भगवान श्री राम की स्तुति करने वाला एक प्रमुख स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान राम के आध्यात्मिक और राजनीतिक गुणों की महिमा का वर्णन करता है और उनकी रक्षा और संरक्षण की प्रार्थना करता है। यह स्तोत्र रामायण के आदि कांड से लिया गया है और विभिन्न प्रकार की संकटों से सुरक्षा प्रदान करने का दावा करता है।

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श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ करने से पुराणों में वर्णित रूप से इसका असाधारण फल मिलता है। यह स्तोत्र भक्ति और श्रद्धा से पढ़ा जाना चाहिए और इसे नियमित रूप से पाठ करने से आनंद, सुख, सफलता और शांति की प्राप्ति होती है।

Ram Raksha Stotra lyrics in hindi with image and pdf | Ram Raksha Stotram in hindi | राम रक्षा स्तोत्र |

Ram raksha stotra lyrics

विनियोग:

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि:। श्रीसीतारामचंद्रोदेवता अनुष्टुप् छन्द: सीता शक्ति:। श्रीमद्‌हनुमान् कीलकम्। श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:॥

अर्थ:- इस श्रीरामरक्षास्तोत्र मंत्र का ऋषि बुधकौशिक है। इस मंत्र की देवता श्रीसीतारामचंद्र हैं और छंद अनुष्टुप् है। सीता शक्ति इस मंत्र की शक्ति हैं। हनुमान जी की कीलक है। इस मंत्र का जप सीतारामचंद्र प्रीति के लिए किया जाता है।

अथ ध्यानम्

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं। पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्॥

वामाङ्कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं। नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्॥

अर्थ: ध्यान करें उनके आर्धवक्षस्थ हाथी, धनुष धारण करते हुए, पद्मासन में स्थित। पीत वस्त्र पहने हुए, नवकमल के पंखों की सीखों के समान आंखों वाले, प्रसन्न विभासूरूप।

वाम उभर्ती सीता के मुख के कमल जैसे दिखाई देने वाले, नील जल के समान। विभिन्न आभूषणों से ज्योतिष्मत्, सिर पर मूंडे हुए मणिमय छटा धारण करते हुए, रामचंद्र।

इति ध्यानम्

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्। एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥१॥

अर्थ: यह रघुनाथ की कथा बहुत विस्तृत है। यह एक अक्षर के ही पाठ से मनुष्यों के महापापों का नाश करने वाला है॥१॥

इस कथा द्वारा रघुनाथ (भगवान राम) की जीवनी बहुत व्यापक रूप से बताई गई है। यह एक अक्षर के मंत्र के पाठ से मनुष्यों के बड़े-बड़े पापों का नाश होता है।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्। जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥२॥

अर्थ: नीलोत्पल रंग के श्याम रंग के भगवान राम को ध्यान करें। जिनकी आंखों में राजीव (कमल) जैसी देखी जाती है। जो जानकी और लक्ष्मण सहित हैं और जटाओं से सजे हुए हैं॥२॥

इस स्तोत्र में बताया गया है कि हमें नीलोत्पल (भगवान विष्णु) रंग के श्याम रंग के भगवान राम का ध्यान करना चाहिए। उनकी आंखों में एक राजीव (कमल) के समान आनंदमयी दृश्य होती है। वे जानकी और लक्ष्मण के साथ हैं और उनके सिर पर जटाओं से सजे हुए हैं।

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्॥३॥

अर्थ: जो रात्रि में धनुष और तीरों वाले हैं, जो चरान्तक हैं। जो अपनी खुद की लीलाओं के द्वारा जगत् के रक्षक रूप में प्रकट होते हैं, अजन्मा और विभु हैं॥३॥

इस स्तोत्र में बताया गया है कि भगवान राम रात्रि में धनुष और तीरों के साथ भगवान शिव के रूप में चरान्तक हैं। वे अपनी खुद की लीलाओं के द्वारा जगत् के रक्षक रूप में प्रकट होते हैं, और वे अजन्मा और सर्वव्यापी हैं।

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्। शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥४॥

अर्थ: ज्ञानी व्यक्ति को रामरक्षा का पाठ करना चाहिए, जो सभी पापों को नष्ट करने वाली है और सभी कामनाएं पूर्ण करने वाली है। मेरे सिर को राघव (भगवान राम) संरक्षित रखें, मेरे भाल को दशरथ के पुत्र श्री राम संरक्षित करें॥४॥

इस श्लोक में कहा गया है कि ज्ञानी व्यक्ति को रामरक्षा का पाठ करना चाहिए। रामरक्षा सभी पापों को नष्ट करने वाली है और सभी कामनाएं पूर्ण करने वाली है। इसके साथ ही यह प्रार्थना की गई है कि भगवान राम मेरे सिर को संरक्षित रखें और दशरथ के पुत्र श्री राम मेरे भाल को संरक्षित करें।

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती। घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥५॥

अर्थ: कौसल्या के पुत्र (भगवान राम) की आंखों को विश्वामित्र का प्रिय होने वाला श्रुति (वेद) संरक्षित करें। नाक को यज्ञों का प्रणेता, मुख को लक्ष्मण के समान प्रेमी संरक्षित करें॥५॥

इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान राम, कौसल्या के पुत्र, की आंखों को विश्वामित्र का प्रिय होने वाला श्रुति (वेद) संरक्षित करें। उनकी नाक को यज्ञों का प्रणेता, और उनका मुख लक्ष्मण के समान प्रेमी रखें।

जिव्हां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः। स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥६॥

अर्थ: जिव्हा को विद्या के संचय का संरक्षक पातु करें, जो भरत की पूजा करता है। कंधे को दिव्य आयुध का संरक्षक पातु करें, भुजाएं को जिनका शक्तिशाली धनुष है, उनका संरक्षक पातु करें॥६॥

इस श्लोक में कहा गया है कि विद्या के संचय का संरक्षक जिव्हा को संरक्षित रखें, जो भरत की पूजा करता है। कंधे को दिव्य आयुध का संरक्षक रखें और भुजाएं को जिनका शक्तिशाली धनुष है, उनका संरक्षक रखें॥६॥

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥७॥

अर्थ: सीतापति (भगवान राम) हाथों को संरक्षित रखें, हृदय को जामदग्न्य का जीतने वाला संरक्षित करें। मध्यमांश (मध्य पर्वत) को खर का वध करने वाला संरक्षित करें, नाभि को जाम्बवान के आश्रय का संरक्षित करें॥७॥

इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान राम सीतापति (राम) को हाथों का संरक्षक रखें, हृदय को जामदग्न्य (परशुराम) का जीतने वाला संरक्षित करें। मध्यमांश (मध्य पर्वत) को खर का वध करने वाला संरक्षित करें, और नाभि को जाम्बवान के आश्रय का संरक्षण करें॥७॥

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः। ऊरू रघुत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्॥८॥

अर्थ: सुग्रीव का स्वामी (भगवान राम) कमर को संरक्षित करें, हनुमान का समर्थ प्रभु। ऊरों को रघु कुल के विनाशकारी से संरक्षित करें॥८॥

इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान राम, सुग्रीव का स्वामी, कमर को संरक्षित रखें, हनुमान का समर्थ प्रभु। ऊरों को रघु कुल के विनाशकारी से संरक्षित रखें॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जाङ्घे दशमुखान्तकः। पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामो खिलं वपुः॥९॥

अर्थ:सेतु निर्माण करने वाला (हनुमान) जानु (जांघ की जोड़ी) को संरक्षित करें, दशमुख राक्षस का वध करने वाला। पैरों को बिभीषण की श्रीदेवी (पत्नी) संरक्षित करें, राम जी का सम्पूर्ण शरीर संरक्षित करें॥९॥

इस श्लोक में कहा गया है कि सेतु निर्माण करने वाला (हनुमान) जांघ की जोड़ी (जानु) को संरक्षित रखें, दशमुख राक्षस का वध करने वाला। पैरों को बिभीषण की श्रीदेवी (पत्नी) संरक्षित रखें, और राम जी का सम्पूर्ण शरीर संरक्षित रखें॥९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्। स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥१०॥

अर्थ:जो यशस्वी और सुकृती (भले कर्म) करने वाला इस राम बल से संपन्न रक्षा का पाठ करता है। वह लम्बी आयुवान होता है, सुखी होता है, पुत्री धारण करता है और विजयी, विनयशील होता है॥१०॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जो यशस्वी और सुकृती (भले कर्म) करने वाला इस राम बल से संपन्न रक्षा का पाठ करता है, वह लम्बी आयुवान होता है, सुखी होता है, पुत्री धारण करता है और विजयी, विनयशील होता है॥१०॥

पाताल-भूतल-व्योम चारिणः छद्म-चारिणः। न दृष्टुम् अपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः॥११॥

अर्थ: जो पाताल, भूतल और आकाश में विचरण करते हैं, और छद्म (गुप्त) रूप से चलते हैं। उन्हें राम के नाम से संरक्षित होने की शक्ति भी नहीं है उन्हें देखने की॥११॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जो पाताल, भूतल और आकाश में विचरण करते हैं और गुप्त रूप से चलते हैं, उन्हें राम के नाम से संरक्षित होने की शक्ति भी नहीं है, उन्हें देखने की॥११॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्। नरो न लिप्यते पापैः भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥१२॥

अर्थ: राम, रामभद्र, रामचंद्र इत्यादि नामों का जप करते हुए। इंसान पापों से लिप्त नहीं होता है और भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है॥१२॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति “राम”, “रामभद्र”, “रामचंद्र” आदि नामों का जाप करता है, तो उसे पापों से लिप्त नहीं होना पड़ता और वह भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है॥१२॥

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्। यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः॥१३॥

अर्थ: जगत् को जीतने वाले एक मन्त्र, रामनाम से संरक्षित है। जो इसे अपने कण्ठ में धारण करता है, उसके हाथ में सभी सिद्धियाँ होती हैं॥१३॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जगत् को जीतने वाले एक मन्त्र, रामनाम से संरक्षित है। जो इस मन्त्र को अपने कण्ठ में धारण करता है, उसके हाथ में सभी सिद्धियाँ होती हैं॥१३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्। अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्॥१४॥

अर्थ: जो वज्रपंजर नाम से युक्त रामकवच को स्मरण करता है। वह सर्वत्र अविचलित बुद्धि के साथ जय और मंगल को प्राप्त करता है॥१४॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जो वज्रपंजर नाम से युक्त रामकवच का स्मरण करता है, वह सर्वत्र अविचलित बुद्धि के साथ जय और मंगल को प्राप्त करता है॥१४॥

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः। तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः॥१५॥

अर्थ: जैसे कि स्वप्न में श्रीरामरक्षास्तोत्र का आदेशक भगवान हनुमान ने दिया था। वैसे ही प्रबुद्ध होकर सुबह जागने पर ऋषि बुधकौशिक ने इसे लिखा॥१५॥

इस श्लोक में कहा गया है कि जैसे कि स्वप्न में श्रीरामरक्षास्तोत्र के आदेशक भगवान हनुमान ने दिया था, वैसे ही जब प्रबुद्ध होकर सुबह जागते हैं, ऋषि बुधकौशिक ने इसे लिखा॥१५॥

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्। अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः॥१६॥

अर्थ: आराम है कल्पवृक्षों का विराम है सभी शब्दों का। अभिराम है तीनों लोकों का आदर्श, श्रीमान् राम हमारे प्रभु हैं॥१६॥

इस श्लोक में कहा गया है कि आराम कल्पवृक्षों का है, सभी शब्दों का विराम है। राम हमारे प्रभु हैं जो तीनों लोकों का आदर्श और श्रीमान् हैं॥१६॥

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ। पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥१७॥

अर्थ: ये दोनों युवक हैं, रूपसंपन्न, सुंदर और महाबलशाली हैं। उनकी आंखें पुण्डरीक के समान विशाल हैं, और उनका वस्त्र कृष्णाजिन और चीर से बना हुआ है॥१७॥

इस श्लोक में कहा गया है कि वे दोनों युवक हैं, रूपसंपन्न हैं, सुंदर हैं और महाबलशाली हैं। उनकी आंखें पुण्डरीक के समान विशाल हैं, और उनका वस्त्र कृष्णाजिन और चीर से बना हुआ है॥१७॥

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥१८॥

अर्थ: ये दोनों दांती हैं, फल और मूली खाते हैं, तपस्वी हैं और ब्रह्मचारी हैं। ये दशरथ के पुत्र हैं, भ्राता राम और लक्ष्मण॥१८॥

इस श्लोक में कहा गया है कि वे दोनों दांती हैं, फल और मूली खाते हैं, तपस्वी हैं और ब्रह्मचारी हैं। वे दशरथ के पुत्र हैं, भ्राता राम और लक्ष्मण॥१८॥

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्। रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ॥१९॥

अर्थ:वे दोनों सत्त्वों के शरण हैं, सभी धनुष्मानों में श्रेष्ठ हैं। वे कुल के नाशकों को रक्षा करने वाले हैं, वे हमारी रक्षा करें॥१९॥

इस श्लोक में कहा गया है कि वे दोनों सत्त्वों के शरण हैं, वे सभी धनुष्मानों में श्रेष्ठ हैं। वे कुल के नाशकों को रक्षा करने वाले हैं, वे हमारी रक्षा करें॥१९॥

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम्॥२०॥

अर्थ: मुझे अपने धनुष से सज्जित करके, वक्षस्थली पर विषु से स्पृशित करके, शरीर पर शर और निषङ्ग के संग रखकर। मेरी रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण हमेशा मेरे साथ रास्ते में चलें॥२०॥

इस श्लोक में कहा गया है कि आप मुझे अपने धनुष से सज्जित करके, वक्षस्थली पर विष से स्पृशित करके, शरीर पर शर और निषङ्ग के संग रखकर। राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा के लिए हमेशा मेरे साथ रास्ते में चलें॥२०॥

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा। गच्छन्‌ मनोरथो स्माकं राम: पातु सलक्ष्मण:॥२१॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि जो युवा है, वह कवच, खड़्ग, चाप और बाण धारण करके अपने मनोरथों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है। ऐसा करते हुए राम और लक्ष्मण हमारी सुरक्षा करें॥२१॥

इस श्लोक में कहा गया है कि युवा हमारे मनोरथों को प्राप्त करने के लिए कवच, खड़्ग, चाप और बाण धारण करके आगे बढ़ता है। ऐसा करते हुए राम और लक्ष्मण हमारी सुरक्षा करें॥२१॥

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि राम दाशरथि हैं, वे शूरवीर हैं, लक्ष्मण के साथ रहते हैं, और वे बलवान हैं। राम को काकुत्स्थ कहा जाता है, वे पूर्ण पुरुष हैं और कौसल्या के पुत्र हैं॥२२॥

इस श्लोक में कहा गया है कि राम दाशरथि हैं, वे शूरवीर हैं, लक्ष्मण के साथ रहते हैं और वे बलवान हैं। राम को काकुत्स्थ कहा जाता है, वे पूर्ण पुरुष हैं और कौसल्या के पुत्र हैं॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥२३॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि राम वेदान्त के ज्ञेय हैं, वे यज्ञेश्वर हैं, पुराणों के पुरुषोत्तम हैं। वे जानकी के प्रिय पति हैं, श्रीमान हैं और उनका पराक्रम प्रमेय है॥२३॥

इस श्लोक में कहा गया है कि राम वेदान्त के ज्ञेय हैं, वे यज्ञेश्वर हैं, पुराणों के पुरुषोत्तम हैं। वे जानकी के प्रिय पति हैं, श्रीमान हैं और उनका पराक्रम प्रमेय है॥२३॥

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि मेरे भक्त, श्रद्धा युक्त, इन शब्दों का नित्यता से जप करने वाला व्यक्ति अश्वमेध और अन्य पुण्य को प्राप्त करता है। इसमें कोई संशय नहीं है॥२४॥

इस श्लोक में कहा गया है कि मेरे भक्त, श्रद्धा युक्त, इन शब्दों का नित्यता से जप करने वाला व्यक्ति अश्वमेध और अन्य पुण्य को प्राप्त करता है। इसमें कोई संशय नहीं है॥२४॥


रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि राम, जो दूर्वा के रंग के समान, पद्मों के आंगन वाले, पीले वस्त्र धारी हैं, उन दिव्य नामों के द्वारा स्तुति की जाती है, ऐसे नर संसारी इस संसार में नहीं होते हैं॥२५॥

इस श्लोक में कहा गया है कि राम, जो दूर्वा के रंग के समान, पद्मों के आंगन वाले, पीले वस्त्र धारी हैं, उन दिव्य नामों के द्वारा स्तुति की जाती है, ऐसे नर संसारी इस संसार में नहीं होते हैं॥२५॥

रामं लक्ष्मण-पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।

अर्थ:: यहां कहा गया है कि राम वह हैं, जो लक्ष्मण के पूर्वज, रघु कुल के उत्कृष्ट, सीता के पति, सुंदर रूपवान, काकुत्स्थ (दशरथ के पुत्र), करुणा के सागर, गुणों का आधार, ब्राह्मणों के प्रिय, धार्मिक।

इस श्लोक में कहा गया है कि राम वह हैं, जो लक्ष्मण के पूर्वज, रघु कुल के उत्कृष्ट, सीता के पति, सुंदर रूपवान, काकुत्स्थ (दशरथ के पुत्र), करुणा के सागर, गुणों का आधार, ब्राह्मणों के प्रिय, धार्मिक।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि राजों का श्रेष्ठ, सत्य पर अडिग, दशरथ के पुत्र, काले रंग का धारण करने वाला, शान्त स्वरूपी, लोगों द्वारा प्रशंसित, रघु वंश के मुकुट, राघव जो रावण का शत्रु है।

इस श्लोक में कहा गया है कि राजों का श्रेष्ठ, सत्य पर अडिग, दशरथ के पुत्र, काले रंग का धारण करने वाला, शान्त स्वरूपी, लोगों द्वारा प्रशंसित, रघु वंश के मुकुट, राघव जो रावण का शत्रु है।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि हम श्रीराम को, रामभद्र को, रामचंद्र को, वेदों के आद्य अर्थ को जानने वाले को, रघु कुल के नाथ को, सीता के पति को नमस्कार करते हैं।

इस श्लोक में कहा गया है कि हम श्रीराम को, रामभद्र को, रामचंद्र को, वेदों के आद्य अर्थ को जानने वाले को, रघु कुल के नाथ को, सीता के पति को नमस्कार करते हैं।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

अर्थ: यहां कहा गया है कि हम श्रीराम को, रामनन्दन को, रघु कुल के राम को नमस्कार करते हैं। हम श्रीराम को, भरत के प्रमुख को नमस्कार करते हैं। हम श्रीराम को, रणकर्कश को नमस्कार करते हैं। हम श्रीराम की शरण में आते हैं, भव संसार से उद्धार की आशा रखते हैं।

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

अर्थ: मन से मैं श्रीरामचन्द्र के पादों को स्मरण करता हूँ। वचन से मैं श्रीरामचन्द्र के पादों का गुणगान करता हूँ। शिरसा सलाम करता हूँ श्रीरामचन्द्र के पादों को। मैं श्रीरामचन्द्र के पास शरण लेता हूँ।

माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

अर्थ: राम मेरी माता हैं, रामचन्द्र मेरे पिता हैं। राम मेरे स्वामी हैं, रामचन्द्र मेरे सखा हैं।

सब कुछ मेरा रामचन्द्र ही है, वह दयालु हैं। कुछ और नहीं जानता, जानता नहीं, नहीं जानता।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

अर्थ: जिसके दाहिने ओर लक्ष्मण है और बायां ओर जनक की पुत्री सीता है, और उसके सामने हनुमान है, उस रघुनंदन को मैं वंदन करता हूँ।

यह श्लोक भगवान राम की स्तुति करता है और उनकी परिवार संबंधीतता को दर्शाता है। इसमें दिखाया गया है कि उनके दाहिने ओर उनके भाई लक्ष्मण हैं, बायां ओर जनक राजा की पुत्री सीता है, और उनके सामने हनुमान हैं। यह श्लोक उनकी परिवारिक स्थिति की महत्ता और उनके प्रशंसा का वर्णन करता है।

लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

अर्थ: लोकों को प्रिय और युद्ध में साहसी, जिनकी आंखें लोटस की तरह सुंदर हैं, रघुवंश के नाथ श्रीरामचन्द्र को, जो करुणा की रूपवती हैं और करुणा को व्यक्त करते हैं, मैं शरण लेता हूँ।

इस श्लोक में भगवान राम के गुणों का वर्णन किया गया है। उन्हें लोग प्रिय मानते हैं, वे युद्ध में साहसी हैं और उनकी आंखें लोटस के समान सुंदर हैं। वे रघुवंश के नाथ हैं, अर्थात् रघुवंशी वंश के राजा हैं। उनकी कृपाशीलता का वर्णन किया गया है, और उन्हें शरण लेने का संकेत दिया गया है।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

अर्थ: मनोजवं: जो मन के स्पष्ट, शीघ्र और तेजी से चलता है, मारुततुल्यवेगं: जिसकी गति हनुमान के समान तेज़ है, जितेन्द्रियं: जिसने इंद्रियों को जीत लिया है, बुद्धिमतां वरिष्ठम्: बुद्धिमानों का वरिष्ठ, वातात्मजं: पवनपुत्र हनुमान को, वानरयूथमुख्यं: वानर सेना के मुख्य, श्रीरामदूतं: भगवान राम के दूत को, मैं शरण लेता हूँ।

इस श्लोक में भगवान हनुमान के गुणों का वर्णन किया गया है। उनकी गति मन से जल्दी चलने वाली है और वे हनुमान जीते हुए इंद्रियों के स्वामी हैं। उन्हें बुद्धिमान और वरिष्ठ माना जाता है। वे हनुमान जी में ही पवनपुत्र हैं और वानर सेना के मुख्य हैं। उन्हें भगवान राम के दूत माना जाता है और उनकी शरण लेने का संकेत दिया

कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

अर्थ: कूजन्तं: जो कूजता है, राम-रामेति: “राम-राम” का ध्वनि उच्चारण करता है, मधुरं: मधुर, मधुराक्षरम्: मधुर ध्वनि वाला, आरुह्य: ऊपर चढ़कर, कविताशाखां: काव्य के शाखा पर, वन्दे: नमन करता हूँ, वाल्मीकिकोकिलम्: वाल्मीकि कोकिल को।

इस श्लोक में भगवान राम के ध्वनि “राम-राम” की मधुरता का वर्णन किया गया है। वाल्मीकि महर्षि, जिन्होंने रामायण का रचना किया, उन्हें कोकिल के समान समझा गया है, जो काव्य की शाखा पर बैठकर मधुर ध्वनि उत्पन्न करता है। यहां वाल्मीकि कोकिल को नमस्कार किया गया है।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

अर्थ: आपदामपहर्तारं: जो आपदाओं को हरता है, दातारं: जो सभी संपत्तियों का दाता है, सर्वसंपदाम्: सभी संपत्तियों की देनेवाला, लोकाभिरामं: जो सभी लोगों को प्रिय है, श्रीरामं: श्रीराम को, भूयो भूयो: बार बार, नमाम्यहम्: मैं नमन करता हूँ।

इस श्लोक में भगवान राम के गुणों का स्तुति किया गया है। वह आपदाओं को दूर करने वाले हैं और सभी संपत्तियों के दाता हैं। उन्हें सभी लोग प्रिय मानते हैं। इसलिए यहां उनका बार-बार नमन किया जाता है।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

अर्थ: भर्जनं: जो संसारिक संबंधों को ध्वंस करता है, भवबीजानामर्जनं: जो संसारिक संकटों को मिटा देता है, सुखसंपदाम्: सुख और समृद्धि का स्थान है, तर्जनं: जो यमदूतों को पीछे हटा देता है, रामरामेति गर्जनम्: जो “रामराम” शब्द से गर्जता है।

इस श्लोक में भगवान राम के गुणों का वर्णन किया गया है। वे संसारिक संबंधों को ध्वंस करते हैं, संकटों को मिटा देते हैं और सुख और समृद्धि की प्राप्ति का साधन हैं। वे यमदूतों को पीछे हटा देते हैं और उनका गर्जने का शब्द “रामराम” होता है।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे, रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् , रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

अर्थ: रामो राजमणि: सदा विजयते: श्रीराम हमेशा विजयी होते हैं, रामं रमेशं भजे: हम भगवान राम, ईश्वर को भजते हैं, रामेणाभिहता निशाचरचमू: राम द्वारा राक्षसी सेना को पराजित किया गया है, रामाय तस्मै नम: राम को नमस्कार है। रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् : राम के सिवाय कोई अन्य परायण स्थान नहीं है, मैं राम का दास हूँ, रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर: राम, मेरा मन सदा राम में लगा रहे, हे राम, मुझे उद्धार करें।

इस श्लोक में भगवान राम की महिमा और भक्ति का वर्णन किया गया है। उन्हें सर्वोच्च राजा माना जाता है, उनकी विजय सदैव निश्चित होती है

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८

अर्थ: इस श्लोक में भगवान राम के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें कहा जाता है कि राम के नाम को बार-बार जपने से मन और मनोहरता में आनंद मिलता है। इसके तुल्य में सहस्रों नामों की महिमा भी नहीं होती है। भगवान राम के नाम में विशेष आनंद और प्रीति है। इसलिए, उनके नाम को जपने में लगातार आनंद मिलता है।

ram raksha stotra pdf 

 श्री राम रक्षा स्‍त्रोत पढ़ने का क्या महत्‍व है ?


श्री राम रक्षा स्त्रोत पढ़ने से रक्षा, शांति, आध्यात्मिक उन्नति, सुख, सफलता और आनंद की प्राप्ति होती है।

श्री राम रक्षा स्त्रोत को आदि कवि वाल्मीकि ने लिखा है।

श्री राम रक्षा स्त्रोत को आदि कवि वाल्मीकि ने लिखा है।

श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ किस विधि से करना चाहिए जिससे की इसका पूर्ण फल मिल सके ?

श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ निश्चित समय में शांत मन से करना चाहिए, प्रतिदिन नियमित रूप से, उच्चारण में ध्यान रखते हुए, पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ।

श्री राम रक्षा स्तोत्र को पढ़ने के क्या लाभ हैं ?

श्री राम रक्षा स्तोत्र को पढ़ने से सुरक्षा, धार्मिकता, मनोशांति, शक्ति, उत्कृष्टता, सुख-शांति, दुर्भाग्य नाश और प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।

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